Abstract: प्रमोद रंजन की यह टिप्पणी हिंदी कहानीकार संजीव चंदन द्वारा प्रकाशित पत्रिका स्त्रीकाल के हिंदी सिनेमा के स्त्रीवादी पक्ष पर केंद्रित विशेषांक के बारे में है।इसमें प्रमोद रंजन ने ओटीटी तकनीक के खतरों के बारे में लिखा है। प्रमेाद रंजन ने लिखा है कि ओटीटी तकनीक से एक बड़ा खतरा यह है कि मुट्ठी भर टेक-कंपनियां लोगों की रुचियों को मैनुपुलेट करने की अकूत क्षमता से लैस होती जा रही हैं।ओटीटी प्लेटफार्म रूप से हमारे बारे में बहुत सारा डेटा जमा कर रहे हैं। वे लगभग अकाट्य अनुमान लगाने में सक्षम हैं कि उनका कौन सा दर्शक भविष्य में क्या पसंद करेगा। सिर्फ फिल्मों के बारे में ही नहीं, बल्कि ओटीटी प्लेटफार्मों के पास हर उपययोगकर्ता के बारे में ऐसी सैकडों जानकारियां हैं, जिसके बारे में सामान्यत: हम सोच भी नहीं सकते। मसलन, उनके पास जो आंकड़े हैं, उसके आधार पर वे अनुमान लगा सकते हैं कि आगामी चुनाव में कितने लोग किस पार्टी को वोट कर करेंगे। वे यह भी बता सकते हैं कि किस दर्शक पर किस प्रकार के ‘कंटेंट’ की बमबारी कर उसके राजनीतिक रुझान को प्रभावित किया जा सकता है।इस टिप्पणी में कहा गया है कि ओटीटी तकनीक के इस पक्ष पर विमर्श होना चाहिए।
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